सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अश्वगंधा के फायदे Ashvagandha benefits in Hindi

अश्वगंधा Ashavgandha


अश्वगंधा भारत में पाए जाने  वाली  एक औषधीय वनस्पति है। 'अश्व' और 'गंध' इन  दो  शब्दों से  मिलकर  बना  है  अश्वगंधा अर्थात ऐसी औषधि जिसमें से अश्व (घोडे) के पसीने जैसी गंध आती है, इसीलिए इसका नाम अश्वगंधा पड़ा है। आयुर्वेदाचार्यों और शोधकर्ताओं का यह मानना  है कि इस औषधि के  सेवन से अश्विन (घोड़े) जैसी  यौन  शक्ति  प्राप्त  की जा  सकती है। भारत के कुछ शुष्क जंगलों में इसके पौधे स्वयं ही पैदा होते हैं। तथापि वर्तमान समय में इसकी अधिक मांग होने की वजह से भारत के कई राज्यों में इसको खेती के रूप में पैदा किया जाता है। देश में किसानों के द्वारा अश्वगंधा की कई प्रकार की किस्म  खेती के रूप में पैदा की जाती है। परंतु जिस अश्वगंधा के पौधे के पत्तों और जड़ों से अश्व जैसी गंध मिलती है उसी किस्म की बाजार में अधिक मांग पाई जाती है। भारत में कई बड़ी आयुर्वेदिक औषधि निर्माण कंपनीया भी इसकी व्यापक रूप में पैदावार कराती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत से इसका निर्यात किया जाता है।


अश्वगंधा का वैज्ञानिक परिचय :

                    --      नाम    --
वैज्ञानिक नाम         -------    Withania somnifera
प्रजाति (कुल नाम)     -----    Solanaceae
अंग्रेजी   नाम       -------       Winter cherry
संस्कृत   नाम       -------      अश्वगंधा, वराहकर्णी
गुजराती नाम      -------        आसंध, घोड़ा आहन
मराठी   नाम        -------       डोरगुंज आसंध
बंगाली  नाम       -------        अश्वगंधा
तैलुगु    नाम         -------       पनेरू


अश्वगंधा का रासायनिक संघटन  


अश्वगंधा में एक उड़नशील तेल और बिथेनिओल नामक तत्त्व पाया जाता है। इसमे सेम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन ऐल्केलायड एंव फाइटोस्टेरोल आदि तत्त्व भी पाए जाते हैं।

अश्वगंधा के गुण --  अश्वगंधा कफ वात नाशक है। इस औषधि में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुण पाए जाते हैं। यह वीर्य वर्धक है अर्थात वीर्य को बढ़ाने वाली है। और यौन दुर्बलता को समाप्त करती है। इसमें दीपन और पाचन के गुण पाए जाने के साथ यह बलवर्धक और नाड़ी बल्य है। यह बलवर्धक, बाजीकरण और एक रसायन औषधि है।


अश्वगंधा के औषधीय प्रयोग  --

क्षय रोग -- (i) अश्वगंधा का 2 ग्राम चूर्ण को अश्वगंधा के ही 20 ग्राम क्वाथ के साथ सेवन करने से क्षय रोग समाप्त हो जाता है।
(ii) 2 ग्राम अश्वगंधा मूल के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम मधु मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग समाप्त हो जाता है।

खांसी --- (i) 10 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण और 10 ग्राम मिश्री को 400 ग्राम पानी में डालकर उबालें और जब वह पानी उबलते हुए 50 ग्राम रह जाए तो उसे ठंडा कर कर थोड़ा-थोड़ा रोगी को पिलाने से कुकुर खांसी या वात् जन्य खांसी का रोग समाप्त हो जाता है।
(ii) 40 ग्राम अश्गंवधा के पत्तों का घन क्वाथ, बहेडे का चूर्ण 20 ग्राम, कथ्था चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, सेंधा नमक ढाई ग्राम को मिलाकर 500 मिलीग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सब प्रकार की खांसी दूर होती है। क्षय कास में भी यह विशेष लाभदायक है।

गंडमाला  --- अश्वगंधा के पत्तों के चूर्ण में गुड़ मिलाकर झारी के बेर बराबर गोली बना लें, इस गोली को सुबह -खाली पेट बासी जल से ले, और पेस्ट बनाकर गंडमाला पर लेप करने से रोग समाप्त हो जाता है।

गर्भधारण  ---  अश्गंवधा चूर्ण 20 ग्राम, जल एक लीटर, 250 ग्राम दूध तीनों को मंद अग्नि पर पकाएं। जब केवल दूध शेष रह जाए तो अग्नि से उतारकर उसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर औषधि तैयार कर लें। अब इस औषधि को मासिक धर्म की शुध्दि के तीन दिन बाद लगातार 9 दिन सेवन करने से अवश्य ही स्त्री गर्भधारण करती है।

मासिक धर्म के शुद्धिकरण के बाद अश्वगंधा का चूर्ण और गाय का घी समान मात्रा में मिलाकर 4 से 6 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट गाय के एक पाव दूध के साथ  लगातार एक महीने तक सेवन करने से स्त्री अवश्य ही गर्भधारण करती हैं।

गर्भपात --- बार बार गर्भपात होने की स्थिति में अश्वगंधा की जड़ और सफेद कटेरी की जड़ का स्वरस निकालकर 20 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट जल के साथ लगातार पांच महीना सेवन कराने से रोग में अवश्य ही लाभ मिलता है।

रक्तप्रदर और श्वेतप्रदर --- अश्वगंधा चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 4 से 6 ग्राम की मात्रा में  सुबह खाली पेट गाय के दूध के साथ और शाम को भोजन से 2 घंटे पूर्व सेवन करने से रक्तप्रदर और श्वेतप्रदर जैसे रोगों में आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।

कृमि रोग  --- अश्वगंधा और  गिलोय का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट लगातार 30 दिन तक सेवन करने से कृमि रोग समाप्त हो जाता है और पेट में बार-बार कीड़े पड़ने की समस्या नहीं

नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए --- अश्वगंधा और धात्री फल का चूर्ण समान मात्रा में लेकर उनके वजन के चौथाई हिस्से का मुलेठी का चूर्ण लेकर तीनों को मिलाकर औषधि तैयार कर लें। इस चूर्ण को सुबह-शाम 2 से 4 ग्राम की मात्रा में लगातार छह महीने तक सेवन करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है।

गठिया वात --- (i)  2 से 4 ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा के चूर्ण को गर्म दूध के साथ लगातार एक महीने सेवन करने से गठिया वात रोग अवश्य ही ठीक हो जाता है। और रोगी को बहुत आराम मिलता है। यद्यपि 2 दिन के औषधि सेवन से ही गठिया वात रोग में लाभ देखने को मिलता है, परंतु इसे लंबे समय तक  सेवन करने से रोग धीरे धीरे जड़ से ही समाप्त हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं।
(ii) अश्वगंधा के 50 ग्राम पत्र लेकर उसे ढाई सौ ग्राम पानी में उबाल लें और जब पानी आधा शेष रह जाए तो उसे छानकर सुबह खाली पेट सेवन कर लें और एक घंटे तक कुछ न खाएं। ऐसा एक सप्ताह करने से ही गठिया वात में आश्चर्यजनक लाभ देखने को मिलता है, और पीड़ा से रोते हुए रोगी को बहुत आराम मिलता है।

अनिद्रा और कटिशूल --- अश्वगंधा चूर्ण में समान मात्रा में शक्कर और गो धृत मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा और कटिशूल जैसे  रोग मिट जाते हैं।

नपुसंकता --- (i) अश्वगंधा के चूर्ण को कपड़े छानकर कर उसमें समान मात्रा में कच्ची खांड मिलाकर औषधि तैयार कर ले अब इस औषधि 4 से 6 ग्राम की मात्रा में  सुबह खाली पेट नाश्ते से 3 घंटे पूर्व गाय के ताजे दूध के साथ और शाम को भोजन करने के 4 घंटे पश्चात दूध के साथ लगातार 60 दिन तक सेवन करने से नपुसंगता समाप्त होकर मर्दाना ताकत अवश्य ही बढ़ती है। इसके अलावा अश्वगंधा के चूर्ण को चमेली के तेल में घोटकर इस तेल को इंद्रिय के ऊपर लगाने से और धीरे-धीरे मसाज करने से लिंग की शिथिलता दूर होकर वह कठोर और उत्तेजित हो जाता है।

(ii) असगंध, दालचीनी और कड़वा कूठ तीनों का चूर्ण समान मात्रा में लेकर कपड़छान कर ले और फिर इसमें गाय का मक्खन मिलाकर एक पेस्ट बना लें और इस पेस्ट से लगभग 10 से 15 मिनट तक लिंग पर मालिश करें लगातार कई दिनों तक ऐसा करने से स्थिल पड़ा हुआ लिंग भी कठोर हो जाता है और पुरुष स्त्री से भोग करने के लायक शक्ति मान हो जाता है।

दौर्बलय  Ashgandh benefits in weakness--- अश्वगंधा का यथा विधि 1 वर्ष तक सेवन करने से शरीर रोग रहित होकर स्वस्थ हो जाता है। इसके सेवन से कमजोरी और वृद्धावस्था दूर होकर शरीर शक्ति और यौवन से  परिपूर्ण हो जाता है।
अश्वगंधा चूर्ण, तिल का चूर्ण और घी समान मात्रा में मिलाकर 30 ग्राम की मात्रा में लगातार 90 दिन तक सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से कमजोर और दुर्बल पतला व्यक्ति भी हष्ट पुष्ट हो जाता है और बलशाली हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं।

कामोत्तेजना के लिए Ashgandh benefits in sexual dysfunction --- 20 ग्राम अश्वगंधा  चूर्ण लेकर आधा किलोग्राम दूध में उबाल लें फिर इस दूध के साथ अश्वगंधा, सोंठ और बबूल के गोंद का मिश्रित चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में 30 दिन तक सेवन करने से दुर्बल व्यक्ति भी स्त्री के साथ भोग करने में समर्थ हो जाता है।



















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Ayurved • आयुर्वेद

                           आयुर्वेद (Ayurved in Hindi) श्री गणेशाय नमः   आयुर्वेद शास्त्र भारतीय ग्रंथो की परंपरा में प्राचीनतम चिकित्सा सिद्धांत का ज्ञान  माना जाता है। आयुर्वेद शास्त्र को विद्वानों ने उपवेद की संज्ञा दी है। भारतवर्ष के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों से ही इसका प्रादुर्भाव हुआ माना जाता है। जिसके  विषय में अनेक  ऋषियों, आयुर्वेदाचार्यो और विद्वानों ने अपने अपने मतानुसार आयुर्वेदिक ग्रंथों की रचना करके मानव जाति को कृतार्थ किया है। भारतवर्ष के महान ऋषियों ने  अपना ज्ञान प्रदान करके मानव जाति पर बहुत बड़ा उपकार किया है।  इन महात्माओं को हम  शत-शत नमन करते हैं। भूमिका :- आयुर्वेद के विषय में भारतवर्ष के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ वेदों में विवरण दिया गया है।  वर्तमान समय में उपलब्ध  प्राचीनतम ग्रंथ चरक संहिता, भेल संहिता और सुश्रुत संहिता आदि प्रचलन में हैं । इनमें  से चरक संहिता कायाचिकित्सा प्रधान तंत्र है और सुश्रुत शल्यचिकित्सा प्रधान हमको यहां चरक संहिता के संबंध में  कुछ कहना है, चरक संहिता के निर्माण के समय  भी आयुर्वेद के अन्य ग्रंथ विद्यमान थे। चरकसंहि

Aloevera benefits in Hindi धृतकुमारी ALOEVERA

घृतकुमारी ALOEVERA (Aloevera Benefits in Hindi) घृतकुमारी एक औषधीय वनस्पति है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में धृत कुमारी के  औषधीय गुणो की महिमा का बहुत वर्णन किया है। इसका विधि पूर्वक सेवन करने से एक स्वस्थ व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए निरोगी जीवन व्यतीत कर सकता है तथा दूसरी ओर यदि कोई रोगी व्यक्ति रोगानुसार विधि पूर्वक इसका  सेवन करें तो वह स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता हैं। इसका पौधा भारत में सर्वत्र पाया जाता है। औषधीय गुणों के साथ साथ  सुंदर दिखने की वजह से कुछ लोग इसे गमलों में लगाकर अपने घरों में रखते है। इसमें कांड नहीं होता जड़ के ऊपर से ही चारों तरफ मासल गुद्दे से परिपूर्ण एक से दो इंच  मोटे होते हैं। इसके पत्तों को काटने पर पीताम वर्ण का पिच्छिल द्रव्य निकलता है। जो ठंडा होने पर जम जाता है, जिसे  कुमारी सार कहते हैं। वर्तमान समय में अनेक आयुर्वेदिक औषधियों में इसका प्रयोग किया जाता है। इसकी अधिक डिमांड होने की वजह से भारतवर्ष में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। शुष्क भूमि में भी इसकी खेती आसानी से हो जाती है। इसकी खेती में अधिक जल की आवश्यकता नहीं होती इसलिए राजस्था

अस्थि तंत्र क्या है?, what is bone structure in Hindi?, अस्थि तंत्र का मतलब क्या होता है

हमारा अस्ति तंत्र ईश्वर की जटिल कारीगरी का एक उत्कृष्ट नमूना है जिसकी रूपरेखा अधिक से अधिक शक्ति गतिशीलता प्रदान करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई है । अस्थि तंत्र की प्रत्येक हड्डी की उसके कार्य के अनुरूप एक विशिष्ट आकृति होती है। एक व्यस्क मनुष्य के शरीर में 206 विभिन्न हड्डियां होती हैं इन सभी हड्डियों में से सबसे लंबी हड्डी जांघ की तथा सबसे छोटी  हड्डी कान की होती है।            अस्थि तंत्र हमारे शरीर के लिए ढांचे का कार्य करता है। विभिन्न शारीरिक गतिविधियों जैसे उठना-बैठना, चलना- फिरना आदि के अतिरिक्त अस्थि तंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य शरीर के नाजुक अवयवों जैसे हृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु इत्यादि की बाह्य आघातो से रक्षा करना है ।अस्थि तंत्र के उस भाग में जहां लचक की अधिक आवश्यकता होती है वहां हड्डियों का स्थान उपास्थि ले लेती है। वास्तव में हमारी हड्डियां मुड नहीं सकती किंतु जहां दो विभिन्न हड्डियां एक दूसरे से मिलती हैं वह संधि-स्थल कहलाता है संधि-स्थल पर हड्डियां अपनी जगह पर अस्थि- बंन्धको द्वारा मांसपेशियों द्वारा जमी होती है। संधि स्थल पर हड्डि