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आयुर्वेदिक चिकित्सा का सिद्धांत

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में केवल मनुष्य को हुए रोगों के लक्षणों के आधार पर ही नहीं बल्कि उनके साथ-साथ रोगी की आत्मा ,मन, शारीरिक प्रकृति वात, पित्त, कफ आदि धातु की स्थिति को ध्यान में रखकर रोगी की चिकित्सा करता है ।  यह पद्धति  त्रिधातु वात, पित्त ,कफ के सिद्धांत पर काम करती है जब मनुष्य के शरीर में वात, पित्त ,कफ सम अवस्था में होते हैं तो मनुष्य स्वस्थ रहता है तथा यह जब विषम अवस्था में हो जाते हैं तो शरीर अस्वस्थ माना जाता है। मनुष्य का जीवन मे स्वास्थ्य याअस्वास्थ्य वात पित्त कफ की अवस्था पर ही निर्भर करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का उद्देश्य वात पित्त कफ को समअवस्था में रखकर मनुष्य को स्वस्थ रखना है ।इसलिए आयुर्वेद लाक्ष्णिक नहीं संस्थानिक चिकित्सा पद्धति है। ।आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक औषधि रसायन का रूप है ।रोग प्रतिरोधक औषधिया एवं व्यक्ति आहार का विस्तृत विवरण विश्व को आयुर्वेद की ही देन है ।रोगों से बचाव के लिए ऋषियों ने अनेक बातों पर ध्यान दिया है आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक या मानसिक नहीं होता ।शारीरिक रोगों का कुप्रभाव मन पर तो मानस रोगों  का  कुप्रभाव शरीर पर पड़ता है। इसलिए आयुर्वेद में सभी लोगों को मनोदैहिक मानकर चिकित्सा की जाती है।
      समय एवं रितु के अनुसार किए जाने वाले आचरण खान-पान रहन-सहन आदि का विस्तृत उल्लेख भी आयुर्वेद में प्राप्त होता है। जिसके अनुसार आहार-विहार अपनाने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा मनुष्य रोगों से बचा रहता है औषधि चिकित्सा के साथ-साथ दिनचर्या प्रातः जागरण प्रातः खाली पेट जल सेवन की विधि मल त्याग की विधि दंत धावन (दांत साफ करने की वैज्ञानिक विधि) शरीर की मालिश तथा  व्यायाम से लेकर वस्त्र व आभूषण धारण आदि का विस्तृत विवरण भी आयुर्वेद में किया गया है। इसी तरह से रात्रि चरिया रात्रि में सोने का समय रात्रि भोजन तथा आचार आदि का सम्यक एवं विस्तृत वर्णन किया गया है।
          संसार में मानव जीवन दुर्लभ माना जाता है। जीवन में स्वस्थ एवं सुखी रहने के लिए धर्म ,अर्थ ,काम तथा मोक्ष का वर्णन भी आयुर्वेद में प्राप्त होता है। प्रत्येक मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए व्यवहार की मर्यादाए क्या  होनी चाहिए तथा  जीवन में सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय ,आध्यात्मिक एवं वैश्विक विचारों का समावेश भी आयुर्वेद में किया गया है ।किस तरह के आचरण से दूर रहना चाहिए मार्ग गमन ,स्वभाव व्यवहार बैठने की विधि ,देखने की विधि क्या है। अमर्यादित आचरण से कैसे बचें आदि विषयों का भी समायोजन किया गया है। सामान्य आचार विचार कैसा हो तथा किस से मित्रता करें और किस से मित्रता न करें किसके साथ कैसे बोले कितना बोले सरल व सहज कैसे रहें । सदाचारी होकर अपने चरित्र स्वभाव एवं प्रकृति को ठीक रखते हुए दूसरों के दुख में शामिल होना तथा अपने सुख में दूसरों को शामिल करना भी आयुर्वेद सिखाता है ।भारतीय ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि वे महान ऋषि एवं आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेदिक के नियमों को अपने जीवन में उतार कर उन्होंने किस तरह से एक संपूर्ण सुखी जीवन यापन किया ।इसलिए हम कह सकते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा मानव जीवन के लिए रोगों से निजात पाने और स्वस्थ जीवन व्यतीत व्यतीत करने के लिए एक श्रेष्ठ  चिकित्सा पद्धति है जिसे अपनाकर मानव स्वास्थ्य प्रदान कर  अपने जीवन को सुखमय बना सकता है।

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